मातृभाषा हिंदी

Date: Mon Aug 02, 2021 01:20PM
© Raviranjan Singh
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सिर्फ हिंदुस्तान की बात करें तो यहां लिखित रूप से २२ भाषाएं बोली जाती है लेकिन हर क्षेत्र की अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाएं होती है। और जब बात हिंदी की आती है तब एक अपनापन का एहसास होता है, भारत के कई राज्यों में हिंदी का प्रयोग ना के बराबर ही होता है खासकर दक्षिण भारत के राज्यों में! पूर्वांचल के राज्यों में ज्यादातर बंगला भाषा का उपयोग होता है तो उत्तर भारत में सबसे ज्यादा हिंदी। कहने को तो राष्ट्रीय भाषा है हिंदी, लेकिन सिर्फ बोलचाल की भाषा बन कर रह गई है। हिंदी सिनेमा जगत में भी हिंदी नाममात्र रह गई है।
  हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी में शुभकामनाएं देने और लिखने वालों की होड़ लग गई! आश्चर्य तो तब हुआ जब हिंदी दिवस की शुभकामनाएं भी अंग्रेजी में लिखा हुआ मिला। वो कहते हैं ना कि अंग्रेज तो चले गए लेकिन उसकी भाषा यहीं रह गई।     मैंने अभी तक जो कुछ अनुभव किया है उसमें पहला ये है कि बच्चे जन्म लेने के बाद जब पहली बार स्लेट और पेंसिल पकड़ता है तो उसे हिंदी वर्णमाला के पहले अक्षर 'अ' सिखाने का प्रयास करते हैं।उच्चतर माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद स्नातक डिग्री लेने के लिए भागलपुर के एक बड़े महाविद्यालय में विज्ञान के विषयों का चयन किया था, नामांकन हो गए, पढ़ाई शुरू हो गई लेकिन पढाई सर के ऊपर से निकल जाता था, दिमाग में कुछ घुसता हीं नहीं था, कारण पूरे विषय में अंग्रेजी का होना! यह समस्या बहुत दिनों तक चलते रहा। कई मित्रों ने कहा "तुम्हें तो हिंदी विषय लेनी चाहिए थी!" पिताजी की भी यही इच्छा थी कि हिंदी साहित्य से स्नातक की डिग्री हो! पर वो कहते हैं ना "समय और सोच कब करवट ले ले पता भी नहीं चलता।" स्नातक की डिग्री के बाद सोचा स्नातकोत्तर हिंदी साहित्य से करें, फिर क्या समय ने अपना खेल दिखाया और लग गए विधि से स्नातक करने! असली समस्याओं का जड़ तो यहां भी है क्योंकि सत्र न्यायालय या व्यवहार न्यायालयों में कार्यवाही या फैसले क्षेत्रीय भाषा में होती है लेकिन उच्च न्यायालयों और माननीय उच्चतम न्यायालय में सारी कार्यवाही और फैसले अंग्रेजी में होते हैं। बड़े-बड़े दफ्तरों, शिक्षण संस्थानों में अंग्रेजी का इस्तेमाल हिंदी की तुलना में बहुत ज्यादा होता है।इधर के कुछ वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिंदी मीडियम वालों के परिणाम बेहतर नहीं हो रहे। अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व के कारण हिंदी भाषियों को वह सम्मान नहीं मिल पाता जो मिलना चाहिए।आज भी बड़े शहरों में हिंदी भाषियों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता, उन्हें अनपढ़ जाहिल गंवार कहा जाता है सिर्फ इसलिए कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती! उन्हें यह मानना चाहिए कि हिंदी हमारे लिए सिर्फ भाषा ही नहीं आत्मसम्मान भी है।

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