सोचता हुँ कि मैं भी किसी से नाराज हो जाऊं,
चुप होकर बैठ जाऊं।
मगर किससे....
किससे रूठूँ,
किसको जताऊं नाराजगी।
ढूंढता हूँ एक शख्स ऐसा मैं
जिससे नाराज होऊं,
वजह-बेवजह ही सही
उससे रूठ जाऊँ।
भले ना मनाए वो मुजे,
मगर रूठ जाने का हक तो दे
मैं भी हूँ,
मुजे भी ये एहसास तो दे।
कभी-कभी मेरा दिल भी दुखता है,
एक हल्का-सा ही सही पर दर्द तो उठता है,
तुम तो अपने आंसुओं में हर गम को बहा देते हो,
मगर मैं...
मैं तो आह भी नही भर सकता,
अपने गम भी बता नही सकता,
खुद ही से लड़कर खुद को समझाता हुँ
अपने आँसू, दर्द, गम खुद ही सह जाता हूँ,
अकेले ही तन्हा होकर
खुद को फिर खोजता हुँ
एक-एक पल संजोकर
फिर जीने लगता हूँ
न बढ़ जाये दर हद से भी ज्यादा
बस इसलिए...
इसलिए ही ये चाहता हुँ कि
मैं भी किसी से नाराज हो जाऊं,
चुप होकर बैठ जाऊं।
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