कर्म कर तू धर्म कर तू किंतु ना दुष्कर्म करतु
कठोरता रख बाजुओं में किंन्तु हृदय को नरम कर तू
जो होना है होगा उजागर हर बात पे ना मर्म कर तू
त्याग दे अब पाप को यमलोक जाना है तुझे
भोगकर इस लोक को परलोक जाना है तुझे
तेरे कर्म ही बदतएंगे किस और जाना है तुझे
भोगना है नर्क या सुरलोक जाना है तुझे
कर्म ही पूजा प्रथम है, कर्म ही प्रधान है
कर्म से मीलती है, मुक्ति कर्म ही कल्याण है
कर्म का ही जान पायो पार्थ ने कुरुक्षेत्र में था
हाहाकार फिर मचाया सब्यसाची ने रणक्षेत्र में
विश्वरूप देख कृष्ण का संजय भी धन्य हो गए
और गीता का ज्ञान जानकर धन्य धनंजय हो गए