माँ
फिक्र में बच्चों के कुछ इस तरह भूल जाती है मां , नौजवा होते हुए भी , बढी नजर आती है मां । रुह के रिश्ते कि यह गहराई तो देखिए , चोट लगती है हमें , और सिसकती है मां । कब जरूरत मेरे बच्चे को हो मेरी इतना सोच कर , सो जाती है उसकी आंखें और जागती रहती है मां । पहले बच्चों को खिलाती है , सुकून और चैन से , बाद में जो कुछ बचा , खुशी से खाती है मां । एक एक हमले से बच्चों को बचाने के लिए , ढाल बनती है कभी तलवार बन जाती है मां । जिंदगी के सफर में गर्दिशों की धूप में , जब कोई साया नहीं मिलता तो बहुत याद आती है मां । जब कोई परेशानी में घिर जाते हैं हम परदेस में , आंसुओं को पहुंचने ख्वाबों में आ जाती है मां । देर हो जाती है घर जाने में अक्सर जब हमें , रेत पर हो मछली जैसे ऐसे घबराती है मां । मरते दम गर बच्चे ना आ पाए प्रदेश से , अपनी दोनों पुतलियां चौखट पर रख जाती है मां । शुक्रिया कभी हो ही नहीं सकता उसका अदा , मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ ।