सब संभाल लेते हैं हम,
भाई की लड़ाई हो या दोस्त के पछड़े,
गर्लफ्रेंड का एक्स हो या उसके घर के बाहर नुक्कड़ पर खड़े फुकरे ।
सब संभाल लेते हैं हम,
हाथो का प्लास्टर हो या छिले हुए घुटने,
गिरे हो बाइक से या खड़े हो टीचर से पीटने,
अब बहन तो विदाई पे रो लेगी पर हम नई रोयेंगे,
चार दिन की रोड ट्रिप है पर हम व्हील पे नहीं सोयेंगे ।
एक छोटा सा किस्सा भी हो जाये, तो उसे बड़ा चढ़ा के सुनाएंगे,
पर जब दिल टूटेगा ना तो अपने दोस्तों को भी नहीं बताएँगे
क्योंकि सब सम्भाल लेते हैं हम ।
क्या है ना दारु की कैपेसिटी से हमारी औकात नापी जाती है,
पर सबको घर छोड़ने की ज़िम्मेदारी भी हमारे हिस्से ही आती है ।
किसी फिल्म की सैड एंडिंग हो या बेस्ट फ्रेंड का फॉरेन जाने का फेयरवेल,
सॉफ्ट नहीं होते हैं, अगर गुस्सा आता तो आज अभी,
पर प्यार जताने वाला सब कुछ कल।
क्या है ना, क्यूंकि माचो इतने है, पर सेंसिटिव टॉपिक पे थोड़े गड़बड़ हो जाते हैं
यार अपन लोग तो मम्मी को हग करने में भी ऑक्वर्ड हो जाते है ।
घर की फाइनेंसियल प्रॉब्लम हो या किसी की तबियत ख़राब,
पापा की सोशल स्टैंडिंग हो या सेफ्टी सिक्योरिटी का सवाल,
सब संभल लेते हैं हम ।
हम वो है जो फूटपाथ पर बाहर की तरफ चलते है,
साया बनते है परिवार का पर धुप में खुद पलते है,
कभी हमारी भी मर्दानगी का पर्दा हटा कर देखना,
कभी थाम ना हमारा भी हाथ, कैसे हो तुम पूछना?
क्यूंकि यार हमारी भी सख्त शक्लों के पीछे एक मासूम सा
बच्चा है जी,
जिसकी ख्वाइशें घर गाडी आसमान नहीं, अपनापन सच्चा है जी,
हमे भी डर लगता है, अकेले अँधेरे कमरों में हम भी सो नहीं सकते,
और सच कहूँ तो झूठे है वो लोग, जो कहते हैं की मर्द रो नहीं सकते ।
बाकी हाँ इसके अलावा सब संभाल लेते हैं हम,
भाई की लड़ाई हो या दोस्त के पछड़े,
गर्लफ्रेंड का एक्स हो या उसके घर के बाहर नुक्कड़ पर खड़े फुकरे ।
सब सम्भाल लेते हैं हम ।
Written By: Zakir Khan
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