तू वो चाँद है .... जिसको मैं पाना नहीं चाहती,,
लेकिन, तूजे देखने का.... एक भी मौक़ा गँवाना नहीं चाहती..
तुम्हें दुर से चाहना मंज़ूर है मुझे, मेरी इस इबादत पर गुरुर है मुझे,
तुम्हें अपने लफ़्ज़ों मैं छुपाकर रखूँ मैं, ● अपनी शायरी मैं बसा कर रखूँगी,चाँद सा है तू,
तेरी चाँदनी नही, मैं खुद को जमी बना कर रखूँगी...!