ऐसा कोई जिन्दगी से वादा तो नहीं था तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था
तेरे लिये रातों में चांदनी उगाई थी क्यारियों में खुश्बू की रोशनी लगाई थी
जाने कहाँ टूटी है डोर मेरे ख्वाब की ख्वाब से जागेंगे सोचा नहीं था
शामियाने शामों के रोज ही सजाये थे कितनी उम्मीदों के मेहमां बुलाये थे
आ के दरवाजे से लौट गए हो यूँ भी कोई आयेगा सोचा नहीं था