शायरी और हीरा

Date: Tue Mar 14, 2023 05:20PM
© Akshat Nihale
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शेख सादी स्वाभिमानी और नेकदिल इनसान थे। जाने माने शायर होने के नाते बड़े-बड़े विद्वान् उनके सत्संग के लिए लालायित रहा करते थे । भौतिक सुख-संपदा को वे आत्मिक आनंद में बाधा मानते थे, इसलिए उनका जीवन सरलता और सात्त्विकता से भरा हुआ था ।
बादशाह शेख सादी की शायरी के दीवाने थे। एक दिन वे शेख सादी के निवास स्थान पर गए। वे अपने साथ एक बेशकीमती हीरा उपहारस्वरूप ले गए। उनकी सादगी देखकर सुलतान के मुँह से निकल गया, ‘आपकी तंगहाली देखकर मैं अपने आपको बहुत दुःखी महसूस करता हूँ।आपको भेंट करने के लिए मैं अपने साथ यह नायाब हीरा लाया हूँ। इसे बेचकर आप अपनी तंगहाली दूर कर सकते हैं। ‘
बादशाह के इन शब्दों को सुनते ही शेख सादी ने कहा, ‘सुलतान, यह आपका भ्रम है कि हीरा किसी समस्या का समाधान कर सकता है। बल्कि सच्चाई यह है कि धन संपत्ति समाज में नई-नई समस्याएँ ही पैदा करते हैं। इनसे परिवार और समाज में दरार पैदा होती है | शायरी सुनकर लोग प्रेम की प्रेरणा लेते हैं, जबकि हीरा तो ईर्ष्या-द्वेष ही पैदा करता है । ‘
शेख सादी सुलतान को लेकर एक शायरी समारोह में गए। उनकी शायरी सुनने के लिए वहाँ हजारों लोग मौजूद थे। देखते-ही-देखते उन्होंने सुलतान द्वारा दिए गए हीरे को अचानक भीड़ के बीच उछाल दिया, फिर क्या था! वह हीरा पाने के लिए लोग एक-दूसरे पर झपटने लगे। उस धक्का- -मुक्की में कई लोग घायल हो गए। यह देखकर सुलतान समझ गए कि शायरी की तुलना हीरे से करना उनकी मूर्खता ही था ।

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